नमक की सही कीमत
एक बार एक सुल्तान अपने लाव-लश्कर के साथ यात्रा पर था। यात्रा लंबी, कई दिनों की थी, और एक बार बीच पड़ाव में रसोई का नमक खत्म हो गया।
रसोइये ने सुल्तान से फरियाद की कि उसके भंडार का नमक खत्म हो गया है। सुल्तान ने तुरंत अपने अपने एक सिपाही को बुलाया और पास के गांव के किराना दुकान से शीघ्र ही नमक लेकर आने को कहा। साथ ही सुल्तान ने सिपाही को रुपए देते हुए कहा कि नमक की वाजिब कीमत देकर ही लाना।
सिपाही की प्रश्न-वाचक निगाहों को सुल्तान ताड़ गया। सुल्तान ने स्पष्ट किया – “तुम सुल्तान के सिपाही, चाहो तो सुल्तान के नाम पर मुफ़्त नमक ला सकते हो या फिर पैसा तो तुम्हारी जेब का नहीं, राजकोष का है ऐसा सोचकर अनाप-शनाप भाव से नमक ला सकते हो। मगर दोनों ही परिस्थिति में तुम गलत कार्य करोगे।
जरा जरा सी बातें ही हमें बहुत कुछ सिखाती हैं। बूंद-बूंद से घट भरता है। आज तुम नमक की तुच्छ सी कीमत सही-सही अदा नहीं करोगे तो भविष्य में बड़े बड़े सौदे में सही कीमत कैसे लगाओगे? इसीलिए जाओ और सही कीमत देकर ही नमक लाओ।”